इंतिहा
ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं...
रविवार, 19 मई 2013
छाँव के टुकड़े
इतिहास को अनदेखा करना
,
खुद को नज़रंदाज़ करना
मेरी दौलत है
.
नादानी के तले
मेरी छाँव के टुकड़े
नहीं होते
.
1 टिप्पणी:
Parul kanani
ने कहा…
bahut hi umda :)
20 मई 2013 को 3:59 am बजे
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1 टिप्पणी:
bahut hi umda :)
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