इंतिहा
ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं...
रविवार, 15 जुलाई 2012
बारिश
जो प्रेमी के नाम सी
ज़बान पर चढ़ जाती है
हम उँगलियों से आसमान को टटोलते रहते हैं
कि इस दफ़ा बरसे तो पूरा आसमान पी जाएँ
.
और जब टूटके गिरते हैं कांच के मोती
समूचा आसमान जैसे त्वचा में निचुड़ आता है
.
2 टिप्पणियां:
अज़ीज़ जौनपुरी
ने कहा…
bhavo se paripurit prastuti
12 अक्तूबर 2012 को 4:20 am बजे
अज़ीज़ जौनपुरी
ने कहा…
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12 अक्तूबर 2012 को 4:20 am बजे
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