इंतिहा
ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं...
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012
गुमना
कभी
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कभी यूँ गुमना होता है कि
जगह पता नहीं होती
,
पहर पता नहीं होता
कानों में पड़ते गीत की धुन पता नहीं होती
मैं होती हूँ दिन और रात ढोए
एक सूखे पत्ते की तरह
..
चित्र कर्टसी - http://bobgarlitz.com/2008/09/
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