इंतिहा
ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं...
शनिवार, 15 अक्तूबर 2011
भाषा
भाषा धुंए की तरह असहनीय हो जायेगी
और हम ताज़ा हवा के लिए
उस बंद कमरे से बाहर निकलेंगे
दिमाग में कुछ सवालों की खनक होगी
हम सब कुछ महसूस करेंगे
हम सभी . . . सब कुछ महसूस करेंगे.
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