इंतिहा
ख़्वाब है कि हर जु़र्म की इंतिहा से मिलूं...
सोमवार, 12 सितंबर 2011
नाम मेरा
उन घांस पे बिछी रातों में,
कैसे लेतीं थीं
तुम नाम मेरा
जैसे राज़
हो वो कोई.
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