शनिवार, 30 अक्तूबर 2010
शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010
सख्त जांच
सब जगह
शोर है ,
संदेह है .
मन के अन्दर
ही अन्दर
कई तूफ़ान हैं ,
एक इस्तीफे के
मांग है .
पर बिल्ला तो
साफ़ कहता है,
मलाई का कटोरा
नहीं छोडूंगा !
इस्तीफा ! नहीं नहीं
वो तो नहीं दूंगा .
एक काम हो
सकता है ,
कार्यवाही होगी ,
इस सबके के पीछे
सख्त जांच होगी .
जांच ? सख्त ?
ये तो वही है ना
जो ढीले लोग करते
हैं , उबासियाँ भरते हुए.
वो ख़त्म हो जाते हैं ,
पर ये जांच ..ये
ख़त्म नहीं होतीं .
सख्त जो ठहरीं !
नाज़ुकी से

आखिर तुम
ही बताओ -
कैसे रखा करूँ
अपनी बात ?
नाज़ुकी से !
नाज़ुकी से ??
हाँ वैसे ही जैसे
"एदगर देगा" के
चित्रों में
बैले नर्तकियां
अपने अंगूठे
से छूती हैं
एक छोटे
धरती के
कोने को
उतनी नाज़ुकी से !
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
लोग क्या याद रखते हैं ?
लोग क्या याद रखते हैं ?
एक अजनबी जगह पर
कुछ नरमी भरे
अजनबी एहसास !
या एक रोज़ कि वो
भूख जो आप को
सेंक सेंक के खा रही थी !
या एक पहाड़ की
सांसें जो अन्दर भरी
थीं तो लगा था
जिंदगी का पता !
या फिर एक साथ ,
जो कभी आप में सिल
जाता है या कभी उधड़ !
पर जानते हो ये भी -
वो था,
वो है ,
और वो रहेगा सदा !
सदस्यता लें
संदेश (Atom)