इश्क में जल जा जले सो कुंदन होए .
जलती राख लगा ले माथे
लगे तो चन्दन होए ..
जब जब शब्द तालू से उठ
कहीं हवा में बिखर जाते हैं
चुपचाप ,बिना कोई आहट किये
तब तब तुम्हारी कविताओं पे
हाथ फेर लेती हूँ .
तब तब तुमसे मिलने चली आती हूँ .
तुम ही तो हो वो
जो उन उड़ते जंगली ख्यालों
के पंख कुतर ..
उन्हें फिर मेरे ज़हन
के पिंजरे में बैठा जाते हो .
तुम्ही तो हो
जो बुझ रही लौ
के खातिर कुछ घी -तेल के
कनिस्तर ले आते हो . :)